कई बार पुलिस आम लोगों के साथ बहुत दुर्व्यवहार करती हैं, मैं एक बार हावड़ा रेल स्टेशन से ग्वालियर जा रहा था| मैं अपने एक दोस्त की गाडी लेकर रेलवे स्टेशन गया, जहाँ पर एक पुलिस वाले ने हमें ठहरने के लिए कहा| उसका मेरे ड्राइवर के प्रति पहला शब्द ऐसा था जैसे हम लोगों किसी कर हत्या कर भाग रहे हो, उस ने हमें गली का आवारा कुत्ता भी नहीं समझा, उसने हमें कुछ दूर जा रूक कर कागजात दिखाने हेतु कहा| हम उस स्थान से पूरी तरह परिचित नहीं हैं, हम समझ नहीं पाए की हम उस अत्यधिक भीड़-भाड़ वाली जगह पर कहाँ रुकें! आगे जाकर हमने सीधा पार्किंग में गाड़ी खड़ी की, हमारा विचार था की हम उसके पास जाकर सारे कागजात निरीक्षण करवाएंगे| पार्किंग पास ही थीं, इतने में होम गार्ड का एक लड़का आया और गाड़ी उसी पुलिस वाले के पास ले जाने के लिए कहा, हम गए| इसके पश्चात् मेरी उससे तथा उसके कनिष्क अधिकारियों से बहुत तीखी बहस हुई, मेरे साथ मेरी पत्नी, दो बहन और वृद्ध माता जी थीं| मैंने उनसे निवेदन किया कि! हावड़ा रेलवे स्टेशन के बहार भारी मात्र में आम लोग या यात्री सर्वदा आवागमन करते हैं, उनमें से किसी एक व्यक्ति को रोक कर "पुलिस की छवि के बारे में पुछें"|
अंतत गाड़ी के कागजात तथा ड्राइविंग लाइसेंस परीक्षा के पश्चात् हमें बताया कि! "अगर वह चाहे मेरे ऊपर अभियोग लगा सकते हैं क्योंकि केवल मात्र वाहन का मालिक और उसका परिवार ही, वाहन पर यात्रा कर सकते हैं|"
पुलिस वाले हमारे साथ चाहे कितना भी दुर्व्यवहार करें, वेसे मुझे नहीं लगता हैं की वे हमें मनुष्य समझते हैं, उनके लिए तो हम गली के आवारा कुत्ते से भी गए गुजरे हैं| परन्तु यह भी सत्य हैं की पुलिस वाले ना हो तो हम रात को अपने घर में चैन से नहीं सो सकते हैं|
भारत का संविधान एक आम नागरिक को न्यूनतम क्या-क्या अधिकार देता हैं?
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