These people need to introspect and decide if they want to live with the existing system or at least morally support a person who's challenging it.
कुछ लोग अरविन्द के बेल ना लेने के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं. उनको तरह तरह की उल्हनाएं दे रहे हैं!
उन लोगों से कुछ सवाल हैं:
१. जब पुलिस वाला FIR नही लिखता तो जनता कहती है के कानून गलत है और कानून के रखवाले भी |
२. जब किसी आरोपी को सालों साल जेल नही होती तो यही जनता कहती है के न्याय प्रणाली कमज़ोर है जो न्याय नही देती |
३. अब जब की श्री नितिन गडकरी जी द्वारा एक केस दो लोगो के खिलाफ लगाया गया, एक अरविन्द और दूसरे दिग्विजय सिंह पर, तो अरविन्द को पेशी पर बुलाया और ज़मानत राशि देने को कहा गया और न ज़मा करने पर जेल, तो न्याय प्रणाली एक दम से अच्छी कैसे हो गयी?
सब जानते है की न्यायपालिका इस केस को कितना लम्बा खींच सकती है और ये भी जानते हैं की अरविन्द चाहे तो २ मिनट में बेल बांड भरकर बाहर आ भी सकते है. लेकिन लोगो की सोच को क्या हुआ?
आज भी देश में हजारों लोग सिर्फ़ इसलिए सालों से जेल में सड़ रहे हैं क्यूंकि उनके पास बेल भरने के पैसे नहीं हैं. अरविन्द ने न्यायपालिका की जड़ता का विरोध करने जैसा मज़बूत कदम उठाया है. फिर भी उनको ही दोषी बताया जा रहा है.
आपमें से जिन्होंने पुलिस और न्यायालय के चक्कर काटे हैं वो समझ सकते हैं की अरविन्द किस चीज़ के विरुद्ध खड़ा हुआ है. आज तक कितने लोगों ने ऐसी हिम्मत दिखाई है?
जब किसी ने अब ये हिम्मत दिखाई है तो कम से कम हम उसका समर्थन करके इस व्यवस्था की जड़ता को चुनौती देने में कम से कम सैद्धांतिक रूप से उसका साथ तो दे ही सकते हैं. more