गोविंदरम शर्मा, यह कितना सही है कि मित्र की पहचान विपत्ति में ही होती है , यदि इस कसौटी पर पुलिस को परखा जाये तो 10 में से कितने अंक एक भुक्तभोगी देगा, अतः पुलिस के आचार विचार एवं दृष्टिकोण में आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है, और यह रातों रात होगा इसकी भी कोई संभावना नहीं है. क्योकि ताली एक हाथ से नहीं बजती है, पुलिस के इस व्यवहार के पीछे कारणों कों समझ कर दूर करना होगा. मूल्यांकन व्यवस्था का करने के पूर्व क्या हमने पुलिस कों पूरी सुविधाये दी है, इस पर भी गौर करना होगा, अन्यथा सारी कवायद बेमानी होगी. अपेक्षाओ का समुद्र और मुट्ठी भर सुविधाये, अन्याय के सिवाय क्या है. साभार,