आदरणीय प्रधानमंत्री जी दिल्ली पुलिस को "स्मार्ट पुलिस" बनाने के सुहावने सपने संजोए बैठे है। वास्तविकता तो यह हैं कि --"स्मार्ट" बनने का सिद्धांत तो उस व्यक्ति/संस्था/विभाग पर लागू होता हैं, जिसका कि वर्तमान बौद्धिक स्तर--कम से कम सामान्य तो हो! "मूढ़ बुद्धि" विभाग को भला कैसे ही सीधे-सीधे स्मार्ट बनाया जा सकता है? उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में स्थित---थाना केशवपुरम, पिनकोड-110035 की निकटतम परिधि में, लगभग बारहों महीनें ही देर रात तक अत्यधिक तेज़ आवाज़ में डी.जे, म्यूज़िक सिस्टमस् और लाऊडस्पीकरों का स्थानीय लोगों पर कहर बरपता हैं, और संबंधित पुलिस अधिकारीगण केवल--मूक दर्शकों की भूमिका में ही अपनी कर्तव्यपरायणता ज़ाहिर करते हैं। 100 नंबर पर किए गए असंख्य फ़ोन कॉल का भी कोई दीर्घकालिक प्रभाव नहीं देखने को मिलता, क्योंकि अगले दिन फिर से वही----"ढाक के तीन पात" वाली कहावत चीरतार्थ हो जाती है। बेहतर तो यही होगा कि आने वाले समय में इस विभाग में-- "रोबो-कॉपस्" की ही भर्ती की जाएं जिससे कि पूरी प्रमाणिकता एवं कर्तव्यनिष्ठा के साथ यह विभाग अपने--शांति, सेवा और न्याय के दर्शाये आदर्श को सार्थक कर सकें। आशा हैं कि ---उच्च अधिकारीगण इस समीक्षा पर गौर करेंगे..!! अन्यथा हम तो, वास्तव में दिल्ली पुलिस विभाग से पूरी तरह से हताश-निराश हो चुके हैं। धन्यवाद॥