This particular work has to be carried out by professionals free from corruption. Ordinary local leaders are not equipped with specific knowledge how to handle city wastes and also eager to make quicke money within their tenure. In fact revenue could be generated by recycling, reusing and reducing waste in scientific way.
नवी मुंबई के स्लम इलाकों में इक्का दुक्का को छोड़कर सभी में स्वच्छ भारत अभियान सिर्फ मजाक है.कोपरखेरणे,घणसौली, नेरुल और सानपाडा और वाशी के कुछ इलाके ऐसे हैं जहां गटर और फुटपाथ कोई देखने तक नहीं आता. नाले गंदगी से भरे पटे हैं. स्वच्छता विभाग सिर्फ फाइलों में हाजिरी लगा रहा है. कान्ट्रैक्ट सफाई कर्मी बेचारे मेहनत कर रहे हैं. मैफको और महापे तथा पावणे एवं रबाले के कई ऐसे कमर्सियल इलाके हैं जहां शायद ही गटन नालों की सफाई या सुधार पर 2 सालों में कोई ध्यान दिया गया हो. एमआईडीसी के 98 फिसदी इलाकों में सड़क और नाले तो हैं लेकिन वहां मलबा पड़ा है..सेटेलाइट सिटी, इको सिटी, राज्य में नंबर वन तथा देश भर में सफाई के मामले में 8वें नंबर का यह शहर हकीकत में कुछ और है..न जाने कौन वे लोग औऱ विभाग हैं जो सिर्फ मेन हाइवे के किनारे की सफाई देखकर नवी मुंबई को नंबर वन का तमगा देते हैं..शायद पैसे लेकर देते हैं..इमानदारी से कहें तो रुलिंग पार्टी और प्रशासन का ज्यादा फोकस अपने अपने फायदे नुकसान पर है..शहर की भलाई पर नहीं...अधिकांश नवी मुंबईकर जो राजनीतिक नहीं हैं इस सच्चाई से वाकिफ हैं..क्योंकि यही हो रहा है. आप भी अब्जर्वेशन कर सकते हैं...सुधीर शर्मा नवी मुंबई