भ्रष्ट मायावती को आने न देना
पिछले तीन चुनावों पर नजर डालें तो तीनों राज्यों में बीएसपी का वोट शेयर 3 से 9 प्रतिशत के बीच रहा है. अगर कांग्रेस के वोट शेयर में बीएसपी के इस वोट शेयर को जोड़ दिया जाए तो राजस्थान और मध्य प्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव को छोड़कर सभी चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर उनसे कम रहा है. मतलब 2003 और 2008 में राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस-बीएसपी का संयुक्त वोट शेयर बीजेपी के वोट शेयर से ज्यादा है. जबकि छत्तीसगढ़ के संदर्भ में तो 2003 और 2008 के साथ 2013 में भी कांग्रेस-बीएसपी का संयुक्त वोट शेयर बीजेपी के वोट शेयर से ज्यादा है.
हाल के दिनों में इन तीनों राज्यों में चुनाव पूर्व के जो भी सर्वेक्षण हुए हैं उनसे जाहिर होता है सभी जगह बीजेपी की ताकत कम हुई है. कांग्रेस अकेले दम पर उससे आगे निकलती दिखाई दे रही है. ऐसे में कांग्रेस का बीएसपी के साथ करार हो गया तो इस गठबंधन के आगे टिकना बीजेपी के लिए बहुत मुश्किल होगा. यह भी संभव है कि तीनों जगह वह सत्ता से बेदखल हो जाए.
इस गठबंधन की मारक क्षमता को साबित करते कुछ अन्य तथ्य
2017 के गुजरात चुनाव के नतीजे भी गौर करने लायक हैं. उस चुनाव में बीजेपी को 99 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस और सहयोगियों को 80 सीटें हासिल हुईं. लेकिन अगर कांग्रेस ने बीएसपी और एनसीपी को साथ रखा होता तो 10 अतिरिक्त सीटों पर उसे जीत मिल सकती थी. तब गुजरात में सरकार कांग्रेस की अगुवाई वाले धड़े की बनती ना कि बीजेपी की.
हाल के कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने आक्रामक तेवर अख्तियार करते हुए बीजेपी को सत्ता से दूर रखने में कामयाबी हालिस कर ली, लेकिन इस क्रम में उसे मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा और अधिक सीटें होने के बावजूद सहयोगी जेडीएस के एच डी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनवाना पड़ा. लेकिन अगर कांग्रेस ने जेडीएस और बीएसपी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया होता तो उसे आज मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं गंवानी पड़ती और बीजेपी कहीं दूर नजर आती.
थम सकता है दलित वोटों का बिखराव
अगर आजाद हिंदुस्तान की बात करें तो मायावती सबसे सशक्त और कामयाब दलित नेता हैं. मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. 2014 के आम चुनाव में बीएसपी को भले ही एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन 4.3 प्रतिशत वोट के साथ वह बीजेपी और कांग्रेस के बाद देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी.
2009 के आम चुनाव में बीएसपी को अब तक सबसे ज्यादा 6.17 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे. 2014 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीएसपी को 20 फीसदी वोट मिले थे और 2017 के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा बढ़ कर 22 प्रतिशत हो गया है. मतलब मायावती की अगुवाई में बीएसपी अकेले दम पर बहुत ताकतवर हैं. कांग्रेस से बीएसपी के करार के बाद दलित वोटों का बिखराव रुकेगा. इससे उनकी सम्मिलित शक्ति कई गुना अधिक बढ़ जाएगी.
बीजेपी को इस खतरे का अंदेशा है
अब देश में बीजेपी की मौजूदा स्थिति पर सरसरी नजर दौड़ाइए. 2014 की मोदी लहर थम चुकी है. दक्षिण अभी संघ के कब्जे से दूर है. उधर पूरब के दो बड़े राज्य पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी बीजेपी सत्ता से बाहर है. गुजरात का किला किसी तरह बच तो गया है, लेकिन उसकी दीवारें कमजोर हो चुकी हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार का खतरा मंडरा रहा है. हाल के उपचुनाव ये गवाही दे रहे हैं कि उत्तर प्रदेश की जमीन भी खिसक रही है.
सभी जगह पर बीजेपी विरोधी बदलावों में दलितों की भूमिका काफी अहम है. यही वजह है कि बीजेपी घबराई हुई है. यह अकारण नहीं है कि बीजेपी ने अपने सभी नेताओं को दलितों के घर जाकर भोजन करने का फरमान जारी किया. यह भी अकारण नहीं है कि मायावती पर कांग्रेस से समझौता नहीं करने के लिए जांच एजेंसियों का दबाव बढ़ाया जा रहा है. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के चाणक्य अमित शाह को यह अहसास है कि वो कांग्रेस को तो हरा सकते हैं, लेकिन उस कांग्रेस को नहीं हरा सकते जिसके साथ ‘हाथी’ हो.
किस्मत ने दिया साथ तो क्वीन बन सकती हैं मायावती
कांग्रेस और बीएसपी के बीच होने वाले करार के केंद्र में आगामी विधानसभा चुनाव के साथ 2019 का आम चुनाव भी है. उस सूरत में अगर बीएसपी को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के लिए अधिक सीटें छोड़नी भी पड़ी, तो उन सीटों की भरपाई राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ समेत कई अन्य राज्यों से हो सकती है. इसका एक अर्थ यह भी है कि 17वीं लोक सभा में बीएसपी भले ही कम सीटों पर चुनाव लड़े, लेकिन जहां भी लड़ेगी वहां जीत की संभावना पहले से कहीं ज्यादा होगी.
वैसी स्थिति में यह मुमकिन है कि बीएसपी के सांसदों की संख्या इतिहास में सबसे ज्यादा हो. अभी तक 15वीं लोक सभा यानी 2009 के आम चुनाव में बीएसपी ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिया था और उसके 21 सांसद थे. यह हो सकता है कि 2019 में यह आंकड़ा भी सुधर जाए. ऐसा हुआ तो यूपीए में कांग्रेस के बाद बीएसपी दूसरे नंबर की पार्टी होगी. 2019 में त्रिशंकु लोकसभा के आसार ज्यादा हैं. तब मायावती किंग मेकर की भूमिका में होंगी और किस्मत ने साथ दिया तो क्वीन भी बन सकती हैं. जाहिर है आने वाला समय मायावती का समय है. उनकी अगुवाई में दलित देश की सियासत में अब तक की सबसे सशक्त भूमिका में नजर आएंगे. more