" बेचारा आम आदमी "
तभी डाकुओं ने देखा की बनियान में भी एक जेब हे सो सेठ की बनियान भी उतरवा ली|
सेठ ने कुछ धन अपनी धोती की अंटी में भी रखा था सो डाकू सरदार ने सेठ की धोती भी खुलवा ली|
अब सेठ जी सिर्फ कच्छे में थे|
डाकू सरदार ने सेठ का कच्छा गौर से देखा तो उसे लगा कि सेठ ने कच्छे में भी कुछ छुपा रखा है| सो डाकू सरदार ने सेठ से पुछा- “कच्छे में भी धन छुपा रखा है क्या?"
सेठ : जी धन नहीं है! इसमें मैंने एक पिस्टल छुपा रखी है|
डाकू सरदार : पिस्टल किस लिए? तू क्या करेगा पिस्टल का? तेरे किस काम की पिस्टल?
सेठ : जी! समय आने पर मौके पर काम लूँगा!
डाकू सरदार : ओ पागल, इस से बढ़िया मौका कबआयेगा? तेरी धोती, तेरा कुर्ता, तेरी बनयान तक लुट गया| तू कच्छे में नंगा खड़ा है, तेरा सारा धन लुट गया! फिर भी इस पिस्टल को इस्तेमाल करने का तुझे मौका नजर नहींआया? लगता है तू भी भारत के आम आदमी मतदाता की तरह ही पागल है|
सेठ को कुछ समझ नहीं आया, तो उसने डाकू से निवेदन किया – "हे डाकू महाराज! कम से कम मुझे ये तो बता दीजिये कि मुझमें व भारतीय मतदाता में आपको ऐसी कौन सी समानता नजर आई जो आपने मुझे भारतीय मतदाता के समान पागल कह दिया|"
डाकू कहने लगा : देख सेठ तू पिस्टल पास होते हुए भी पूरा लुट गया| धन के साथ तेरे कपड़े तक हमने उतार लिये| फिर भी तूने अपना धन और कपड़े बचाने को पिस्टल का उपयोग नहीं किया. यह ठीक उसी तरह है जैसे भारतीय मतदाता पुरे पांच साल तक नेताओं से लुटता हुआ डायलोग मारता रहता है कि अगले चुनाव आने दीजिये, अपने वोट से इन नेताओं को सबक सिखाऊंगा|
अब देख भारतीय जनता को नेताओं ने इतना लुटा कि अब उसके पास कुछ नहीं बचा है जबकि उसके पास "मत" (वोट) रूपी ऐसा हथियार है जिसके इस्तेमाल से वह नेताओं द्वारा लुटे जाने से आसानी से बच सकता है| पर वह भी तेरी तरह ही सोचता रहता है कि इस चुनाव में नहीं, अगले चुनावों में इस नेता को देखूंगा! और इसी तरह देखने का इंतजार करते करते भारतीय मतदाता नेताओं के हाथों लुटता रहता है, ठीक वैसे ही जैसे तुम पिस्तौल होने के बावजूद हमसे लुट गए|
इतने घोटालों के बाद भी सत्ता और विपक्ष दोनों मस्त हैं। सत्ता वाले तो मस्त हें ही, विपक्ष अगली बार सत्ता के सपने देखने में मस्त हे। और बेचारा लुटा पिटा आम आदमी कोने में खडा हाथ बांधे रो रहा हे।
धरम-जाति, बाहु-बल, पर्लोभनो, पैसे से सत्ता, सत्ता से पैसा की राजनीति में बंटा हुआ आम आदमी अपने पिस्टल (मत ) का सही इस्तेमाल नहीं करता और फिर कभी एक या दूसरा दल इसे बुधू बना कर सत्ता में आ जाता है। मतदान के दिन का 'एक दिन का राजा' पांच साल के लिए भुला दिया जाता हे।
क्या हम आम आदमी पांच साल इंतज़ार करें या सब मिलकर, ' अन्ना ' के अर्जुन, एक सच्चे सुच्चे निस्वार्थी देशभक्त ' अरविन्द केजरीवाल ' का साथ दें, ये वयवस्था बदले और एक ईमानदार भारत निर्माण में जुट जाएँ।
जय हिन्द ! more