राष्ट्रपति का भाषण
या फिर यह कह कर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं. राष्ट्रपतिजी, आप देश के प्रमुख हैं. न्यायपालिका आप के आधीन आती है. तो फिर ऐसे नियम क्यों नहीं बनाये जाते कि न्यायपालिका का बोझ काम हो सके. उदाहरण के तौर पर झूठा साक्ष्य (परजुरी) कानून को सख्ती से लागू क्यों नहीं किया जाता. न्यायपालिका अपने फैसले केवल कानून के आधार पर ही क्यों नहीं सुनाती. अदालत की कार्यवाही कैमरा में (इन कैमरा) क्यों नहीं की जाती. यदि ऐसा किया जा सके तो, लंबित और अदालत तक पहुंचने वाले केसों में भारी कमी आ सकती है. इस से महिलाओं को न केवल शीघृ न्याय मिल सकेगा बल्कि अपराधियों के भी हौसले टूटेंगे.
पर शायद यह सब कर पाना संभव नहीं है क्योंकी ज़यादहतर अपराधी राजनीतिक खेमें से ही आते हैं.
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