स्वतंत्रा तथा रिश्वत
एक फिल्म में मैंने यह संवाद सुना था |
कानून के अपने हाथ-पैर नहीं हैं और ना ही कानून बुद्धि रखता हैं, जिस कारण हाथ-पैरों तथा ज्ञान-बुद्धि से संपन्न मनुष्य कानून के प्रतिबिंब हैं | परन्तु कानून की हिफाजत और सेवा करने वाले रखवालों का कहना ही क्या!
एक आम आदमी जिसे कानून ने स्वतंत्रता का अधिकार दे रखा हैं, क्या वास्तविक रूप से वह स्वतंत्र हैं ? क्या उसे प्रतिवाद करने का अधिकार हैं ? समाज में सभी मानते हैं कि वास्तव में एक आम आदमी अपने भाग्य के बल पर ही सुरक्षित हैं, समाज में न्याय बड़ी ही मुश्किल से मिलती हैं |
वास्तविकता तो यह हैं की अपने अधिकारों के लिए बोलने वालों को नाना प्रकार से प्रताड़ित होना पड़ता हैं | अगर उसके साथ कुछ गलत होता हैं, तो उसका वह प्रतिवाद नहीं कर सकता, उसे दया का पत्र बनना पड़ता हैं | हमारे द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों से ही सरकार चलती हैं, सरकारी मुलाजिमों को तनख्वाह दी जाती हैं | उसके बाद भी इनका पेट नहीं भरता हैं, कहीं न कहीं से रिश्वत लेने का वे प्रयास करते ही रहते हैं |
क्या हमें यह मान लेना चाहिये ही विद्यालय, महाविद्यालय इत्यादि शिक्षण संस्थानों पर हमें जो सिखया जाता हैं कि अगर आप के साथ कुछ गलत होता हैं की आप प्रतिवाद करें, अपने अधिकारों के लिए लड़ें इत्यादि, छोड़कर हम दया का पत्र बनें | more