Smriti Irani as HRD Minister
स्मृति के विरोध में जो तर्क थे वो उनका केवल बारह क्लास तक पढ़े होना, चुनाव आयोग तो दिए गए तीन अलग-अलग हलफनामों में अपनी शैक्षणिक योग्यता को अलग-अलग बताना, चुनाव हारने के बावजूद इतना महत्वपूर्ण विभाग मिलना, अपरिपक्व और कम तजुर्बेकार होना और इस पद के काबिल नहीं होना बताया गया....ये भी कहा गया जब और इतने सारे काबिल और तजुर्बेकार बीजेपी सांसद मौजूद थे तो फिर स्मृति पर ये मेहरबानी क्यों ?
स्मृति के पक्ष लेने वाले कहते हैं क्या पढ़े लिखे लोगों ने ऐसा क्या अच्छा कर डाला इस मुल्क के लिए ? फिर वो बिल गेट्स और मार्क जुकेर्बर्ग , सचिन आदि का उदहारण देते हैं...फिर वो विपक्ष के कम पढ़े लिखे लोगों जैसे सोनिया गाँधी, राबड़ी देवी का उदाहरण देते है....फिर कहते हैं कि योग्यता के लिए डिग्री की जरुरत नहीं..
तो काफी मशक्कत करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि स्मृति ने अपने हलफनामे में साफ़ तौर पर गलत जानकारी दी, वो दो बार हारी हुई नेत्री है, अभी उतनी परिपक्व नहीं हैं और उनके हुनर और योग्यता का इस्तेमाल अगर मोदी जी किसी और विभाग और किसी अन्य पद पर करते तो ज्यादा बेहतर होता....
१. जो ये कहते हैं कि योग्यता के लिए पढ़ा-लिखा होना जरुरी नहीं तो क्या वो कल सुबह ही अपने बच्चों के स्कूल में ये मांग करेंगे कि उनको ज्यादा पढ़े-लिखे अध्यापक अपने बच्चों के लिए नहीं चहिये और कुछ योग्य “बारह पास” शिक्षकों को ही स्कूल में रखा जाये ?
२. क्या स्मृति का उदाहरण सामने रखते हुए वो अभिभावक जिनके बच्चे ग्रेजुएशन या पोस्ट-ग्रेजुएशन कर रहे हैं अपने बच्चों को कम योग्यता का मानते हैं ? अगर ऐसा नहीं तो क्यों अपने बच्चों को अपनी योग्यता साबित करने के लिए और बेकार के सर्टिफिकेट इकठ्ठा करने को दिन रात कोसते हो भाई ?
३. सचिन, बिल गेट्स, धीरुभाई अम्बानी आदि का उदाहरण देने वालों को बस इतना कहूँगा कि इन लोगों ने अपने अपने कार्यक्षेत्र में अपनी काबिलियत के तौर पर अपनी पहचान बनाई....ये लोग व्यक्तिगत उपलब्धि की ऊँचाईयां छू कर पूरी दुनिया पर छा गए...पर क्या इन्हें किसी राष्ट्र के महत्वपूर्ण और निर्णायक भाग्य-विधाता वाले पद पर बैठाया गया ? क्या इन लोगों को ये हक दिया गया कि वो लाखों-करोड़ों लोगों के शिक्षा और मानव संसाधन का फैसला ले सकें ? नहीं...अगर स्मृति कम पढ़ी-लिखी होकर अभिनय में अपना हुनर दिखाते हुए बुलंदी पर पहुँचती है तो उनका साधुवाद है....पर केवल अभिनय से नाम कमाने वाले व्यक्ति को कैसे देश का इतना बड़ा ओहदा दे दिया जाये जबकि उन पर जनता ने भी इस लहर में भी उन पर अपनी मुहर नहीं लगाई?
४. राजनीती में सोनिया. राबड़ी देवी और अन्य कम पढ़े लोगों का भी सन्दर्भ दिया जा रहा है...पर क्या जो गलत परंपरा ये मुल्क पिछले साठ सालों से सह रहा है उसका हवाला देकर उस गलत परंपरा को भी आगे बढाया जायेगा ? इस हिसाब से तो भ्रष्टाचार को जायज ठहराने के लिए बढ़िया जमीन की तालाश पूरी हो गयी लगती है..........ये विडम्बना है कि राबड़ी, सोनिया जैसे कम पढ़े-लिखे लोगों की वजह से ही आज इस मुल्क की ये हालत है..तो क्या बीजेपी भी उसी परंपरा को अपनाएगी ? क्या इसी लिए उसे इतना बड़ा बहुमत मिला है कि वो कांग्रेस की घटिया राजनीती का अनुसरण करे ?
५. कुछ लोग कह रहे हैं कि ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों ने क्या तीर मार लिए इस देश के लिए ? पर इसका मतलब ये तो नहीं कि आप कम पढ़े लिखे लोगों को आगे कर दो...अगर दो या तीन डाक्टरों के पास जाकर भी आपके बच्चे का रोग दूर नहीं कर पा रहे तो आप क्या करेंगे ? किसी और डाक्टर के पास जायेंगे या किसी नीम-हाकिम या कम्पाउण्डर से इलाज़ करवायेगे ? मेरे ख्याल से और ज्यादा बड़ी डिग्री वाले और ज्यादा तजुर्बेकार डाक्टर के पास ना.....तो काम ना कर सकने वालों की जगह काम कर सकने वाले पढ़े-लिखे लोग ही आने चाहियें...
६. एक बात और कही जाती है कि क्या अब उड्डयन मंत्रालय के लिए पायलट होना जरुरी है ? जी नहीं जनाब...पायलट होना जरुरी नहीं..पर पायलट की बात समझने जितनी शिक्षा और क़ाबलियत होना तो जरूरी है ना...उस विभाग की जानकारी लेने और फैसले लेने के लिए कुछ तो शैक्षणिक योग्यता रखनी ही होगी ना ? फिर इस तर्क से तो अस्पताल में सिविल सर्जन बनने के लिए डाक्टर होने की क्या जरुरत है ? पुलिस कमिश्नर भी फिर किसी दफ्तर के बाबू को बनाया जा सकता है......
दोस्तों, शिक्षा का मूल उद्देश्य क्या है ? यही ना कि एक कम पढ़े लिखे इंसान के मुकाबले ज्यादा बेहतर तरीके से बात को समझा जा सके, उसके परिणामों पर तार्किक आधार पर विवेचना करने की काबिलियत हो, चीजों और मुद्दों की बारीकियों का अवलोकन करने में आसानी हो, किसी भी फैसले के दूरगामी परिणामों पर सटीक विश्लेषण करने का वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो---इसीलिए तो शिक्षा की इतनी अहमियत बतलाई गयी है...तभी तो कहते हैं कि भले ही लड़की को शादी के बाद नौकरी ना करनी हो तब भी उसका पढ़ा-लिखा होना तो जरुरी है चाहे उसे घर-गृहस्थी ही क्यों ना संभालनी हो...
अब बात केवल जिद की हो गयी है....किसी भी हालत में अपनी बात पर अड़े रहने की...जो लोग स्मृति को इस पद के लिए लायक मानते हैं उनसे गुजारिश है कि अपनी असल जिन्दगी में भी ---
- अपनी डिग्री आप आज ही फाड़ कर फेंक देंगे क्योंकि आपकी योग्यता किसी डिग्री की मोहताज़ कब से होने लगी...
- अपने बच्चों को कभी पढाई-लिखाई में पीछे रहने या फेल होने पर भूल कर भी नहीं डांटेंगे...
- उन्हें मंहगे स्कूल में पढ़ाने की बजाये आम सरकारी स्कूल में पढ़ाएंगे....
- किसी भी इंटरव्यू में अपने से कम पढ़े लिखे और कम क़ाबलियत के व्यक्ति के चुने जाने पर चूं तक नहीं करेंगे भले ही आपके परिवार के सदस्य के साथ ऐसा अन्याय हुआ हो..
- आगे से पढ़े-लिखे डिग्री धारक डाक्टर के पास जाने की बजाये आप लोकल फर्जी डिग्री वाले कम्पाउण्डर , नीम-हाकिम, बाबा के पास अपने परिवार का इलाज़ करवाएंगे क्योंकि आपका खुद का मानना है कि योग्यता को डिग्री की जरुरत नहीं होती...
-कल किसी अस्पताल में अगर चपड़ासी आपको मरीज़ के सिर पर टाँके लगाता मिले तो कुछ कहना मत उसे क्योंकि उसकी योग्यता भी किसी मेडिकल कॉलेज की डिग्री की मोहताज़ नहीं है..
- कल चलकर आपसे जूनियर और कम पढ़े या कम काबिलियत वाले को आपसे पहले प्रमोशन मिले तो आप ख़ुशी-ख़ुशी उसे स्वीकार कर लेंगे क्योंकि शायद वो आपसे ज्यादा योग्य होगा..
- आप अपने बच्चों की शादी के समय गलती से भी लड़के/ लड़की की पढाई पर बिलकुल गौर नहीं करेंगे क्योंकि योग्यता किसी डिग्री की मोहताज़ नहीं ऐसा आपका ही मानना है....
कालिदास, तुलसीदास और कबीर का उदाहरण देने वालों से मैं पूछना चाहूँगा कि बेशक वो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे पर उनका सम्मान भी तभी हुआ जब उन्होंने अपने आप को तपस्या की भट्टी में तपाकर इस काबिल बना लिया कि उनकी कांति चारों और फैलने लगी...और फिर उनका नाम हुआ..
पर स्मृति ने अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया है कि उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिले..पहले वो राजनीती में आकर नीचे से काम करना शुरू करें, छोटे मंत्रालयों में राज्य मंत्री के तौर पर रहे, अपनी काबिलियत साबित करें, पार्टी के कैडर से जुडें और फिर भविष्य में कभी ऊँचे पदों पर आने के लिए अपनी दावेदारी ठोकें.....
आखिरकार मोदी जी को प्रधान मंत्री पद के लिए इस तरह तो नहीं टोका गया ना...उन्होंने अपनी क़ाबलियत दिखाई ,लोगों ने उस पर मुहर लगाई और आज वो इस मुकाम पर हैं...
टीवी पर प्रसिद्द चेहरा होने का ये मतलब तो बिलकुल भी नहीं होना चाहिए कि आपको सब कुछ आता है...टीवी पर एक फौजी की शहादत का किरदार निभाने से आप फौज के कमांडर के पद के काबिल तो नही हो जाते ना.....
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